जोधपुर। जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र विभाग ने अपने अस्तित्व के 75 वर्ष पूर्ण कर लिए है। आजादी के बाद वनस्पति शिक्षा एवं शोध हेतु जसवंत कॉलेज में शुरू किए गए वनस्पति शास्त्र विभाग की ऐतिहासिक यात्रा में कई सुनहरे अध्याय है। आजादी से पहले राजपूताना रियासत में जसवंत कॉलेज की स्थापना 1892 में हुई थी जिसमें सभी विषयों का समेकित अध्ययन करवाया जाता था, परन्तु वर्ष 1948 में विभिन्न विषयों के पृथक विभागों की स्थापना में वनस्पति शास्त्र विभाग की स्थापना थार मरूस्थलीय पादपों पर विशेष शोध की आवश्यकता को देखते हुए की गई। वर्ष 1948 से आज तक वनस्पति शास्त्र विभाग अपने चहुमुखी विकास की तरफ लगातार अग्रसर हो रहा है। विभाग ने शिक्षा एवं शोध में कई नये आयाम स्थापित किए है। इस वर्ष वनस्पति शास्त्र विभाग अपने सफलता के 75 वर्ष पूर्ण करने के उपलक्ष में प्लेटीनम जुबली समारोह का आयोजन तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठि के साथ दिनांक 27 नवम्बर से 29 नवम्बर तक करने जा रहा है। राष्ट्रीय संगोष्ठि का आयोजन का मुख्य विषय "फंगस विज्ञान" रखा गया है। इस संगोष्ठि का आयोजन भारत की माइकोलोजीकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। इस संगोष्ठि में भारत के विभिन्न राज्यों के करिबन 400 फंगस वैज्ञानिक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी भाग लेंगे।
आयोजन सचिव प्रो. प्रवीण गहलोत ने बताया की "फंगस विज्ञान" में खाने योग्य मशरूम पर शोध मंथन, फंगस से बनाए जा रहे एण्टीबायोटिक्स, एण्टीआक्सीडेन्ट एवं एण्टी कैंसर जैसी महत्वपूर्ण औषधीयों के नवीनतम शोध पर चर्चा होगी। नैनो टेक्नोलोजी द्वारा फंगस का उपयोग कर विभिन्न प्रकार के औद्योगिक उत्पाद, पर्यावरण संरक्षण हेतु आवश्यक एन्जाइम, जैव अपघटन हेतु आवश्यक विशिष्ट फंगस की प्रजातियाँ का अन्वेषण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर फंगस विशेषज्ञ अपना शोध उद्बोधन देंगे।
फंगस विज्ञान की इस महत्वपूर्ण 51वी संगोष्ठि में फंगस जैव अभियान्त्रिकी विषय को सम्मिलित किया गया है, जिसमें युवा वैज्ञानिकों एवं शोध विद्यार्थियों का आमुखीकरण नये उद्योगों की स्थापना एवं स्टार्टअप के नवीन क्षेत्र की तरफ आकर्षण करना है। राष्ट्रीय संगोष्ठि में पर्यावरण सरंक्षण एवं सतत विकास के विषय विशेषज्ञों को विशेष रूप से आमंत्रण दिया गया है, जो कि फंगस विज्ञान को पर्यावरण संरक्षण एवं सतत विकास में शोध को रेखांकित करेंगे।
थार मरूस्थल के पादपों पर शोध है मुख्य उद्देश्य
वर्ष 1948 में स्थापना के पश्चात से ही वनस्पति शास्त्र का मुख्य उद्देश्य थार मरूस्थल के पादपों पर शोध रहा है। मरूस्थलीय वनस्पतियाँ जो की उच्च तापमान, कम पानी, कम वर्षा, बालु मिट्टी, गर्म हवा (लू) में पनपने के कारणों की जाँच, पादपों के अनुकुलन व कार्यिकी का अध्ययन प्रमुख शोध विषय रहे है।
फ्लोरा ऑफ थार मरुस्थल का प्रकाशनः वनस्पति शास्त्र विभाग की देन
वनस्पति शास्त्र विभाग के प्रो. एम.एम. भंडारी द्वारा सम्पूर्ण थार मरूस्थल का सर्वे, विभिन्न मरूस्थलीय प्रजातियों की पहचान, पादप प्रजातियों का वर्गीकरण इत्यादि का करीब 40 वर्षों तक शोध करके "फ्लोरा ऑफ थार डेजर्ट" का प्रकाशन किया है। "फ्लोरा ऑफ थार डेजर्ट में करिबन 690 प्रजातियों का वर्णन, उनकी विशिष्ट पहचान व चित्रों के साथ दिया गया है।
विश्वविद्यालय के सर्वोच्च विभाग में शुमार है वनस्पति शास्त्र विभाग
जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय की समस्त संकाय एवं करिबन 38 विभाग में पिछले 5 दशकों से सर्वोच्च विभाग में गिना जाता है वनस्पति शास्त्र विभाग। नवीनतम पाठ्यक्रम, नियमित कक्षाए, शैक्षणिक अनुभवी समर्पित शिक्षक, विद्यार्थियों के चहुमुखी विकास हेतु क्यूज, सेमीनार, टर्म टेस्ट का आयोजन, शैक्षणिक भ्रमण, सह-शैक्षणिक गतिविधियाँ, खेलकूद एवं सांस्कृतिक प्रतियोगिता का प्रतिवर्ष आयोजन, विद्यार्थी-शिक्षक संवाद, एक्सटेंशन लेक्चर, प्रायोगिक कार्यों को प्राथमिकता, शोध कार्य को समर्पित शोधार्थी, शोध कार्य का विश्व के सर्वश्रेष्ठ जर्नल में प्रकाशन, पुस्तकों का प्रकाशन, संगोष्ठी, सेमीनार, कान्फ्रेंस का आयोजन, रोजगार हेतु विद्यार्थियों का मार्गदर्शन इत्यादि दैनिक गतिविधियों के कारण विगत 50 वर्षों से सर्वोच्च विभाग में स्थान रखता है वनस्पति शास्त्र विभाग।
विभाग को सेंटर फॉर एडवान्स स्टडीज का दर्जा हासिल
वर्ष 2013 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा विभाग का दौरा कर शैक्षणिक गतिविधिया, शोध की गुणवत्ता, शोध कार्य का प्रकाशन, शोध प्रगति इत्यादि का अध्ययन कर विभाग को सेंटर फॉर एडवान्स स्टडीज का दर्जा प्रदान किया गया था। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त सेंटर फॉर एडवान्स स्टडीज ईन बॉटनी का यह भारत में ऑठवा विभाग है।
विषय विशेषज्ञ के शोध से मिली वैश्विक पहचान
वनस्पति शास्त्र विभाग के शिक्षकों के शोध समर्पण भाव व लगातार मेहनत के कारण विभाग को पादप शोध में वैश्विक पहचान मीली है। प्रो. के.एस. बीलग्रामी द्वारा फंगाई ऑफ इंडिया का प्रकाशन, प्रो. एम.एम. भण्डारी द्वारा फ्लोरा आफ इंडियन थार डेजर्ट का प्रकाशन, प्रो. डी.एन. सेन द्वारा मरूस्थलीय पादप पारिस्थितिकी पर शोध, प्रो. नरेन्द्र सांखला द्वारा पादप कार्यिकी पर शोध, प्रो. एच.सी. आर्या द्वारा पादप रोग विज्ञान, प्रो. बी.डी. शर्मा द्वारा ब्रायोफाइटा, टेडियोफाइटा, जिम्मोस्पर्म एवं पादप जिवाश्म विज्ञान पर करिबन 400 शोध पत्रों का प्रकाशन, प्रो. नरपत सिंह शेखावत द्वारा करिबन 40 पादपों का टिश्यू कल्चर की तकनीकी विकसित करना एवं उनका सरंक्षण, प्रो. पवन कसेरा द्वारा मरूस्थलीय पादपों के आर्थिक महत्व का अध्ययन, प्रो. हुकम सिंह गहलोत द्वारा मरूस्थलीय पादपों में जैविक नाइट्रोजन स्थरीकरण का अध्ययन इत्यादि है।
वर्तमान में विभाग में 6 आचार्य, 1 सह-आचार्य एवं 14 सहायक आचार्य कार्यरत है, उनके द्वारा 12 प्रयोगशालाओं में कार्य कुशलता के साथ पादपों पर निरन्तर शोध कार्य किया जा रहा है तथा प्रतिवर्ष लगभग 50 शोध पत्रों का प्रकाशन राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की शोध पत्रिकाओं में किया जा रहा है।
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