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जोधपुर में भव्य कार्यक्रम, गोराधाय की वीरता और बलिदान को किया गया याद

गोराधाय छतरी के जीर्णोद्धार और स्मारक निर्माण की मांग

जोधपुरवीरांगना जसधारी गोराधाय टाक की 379वीं जयंती जोधपुर में हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। गोराधाय की छतरी स्मारक पर आयोजित एक भावभीनी पुष्पांजलि कार्यक्रम में नगर निगम (उत्तर) की महापौर कुंती देवड़ा, पूर्व महापौर घनश्याम ओझा, पूर्व राज्य मंत्री राजेंद्र सिंह सोलंकी, सुनील परिहार, प्रेम सिंह परिहार (माली संस्थान अध्यक्ष), उत्कर्ष संस्थान के सीईओ डॉ. निर्मल गहलोत, राजस्थान प्रदेश कांग्रेस की महिला सचिव अनिता परिहार, पुस्तक लेखक लक्ष्मण लालवानी, एडवोकेट विजय शर्मा, सुभाष गहलोत, आनंद सिंह परिहार, ताराचंद गहलोत, जसवंत गहलोत, धर्मेंद्र सिंह गहलोत, डॉ. निधि गहलोत, डॉ. तेज कंवर सांखला, कंवरा राम देवड़ा, राजेंद्र सांखला, हरिसिंह आर्य, राजेंद्र सिंह गहलोत सहित माली समाज परिवार और अन्य गणमान्य अतिथियों ने भाग लिया।

इस अवसर पर लक्ष्मण लालवानी द्वारा लिखित पुस्तक "मर्दानी लालनाएँ" का विमोचन भी किया गया। यह पुस्तक कई वीरांगनाओं की शौर्य गाथाओं का संग्रह है, जिसमें वीरांगना गोराधाय की वीरतापूर्ण कहानी का भी विस्तृत वर्णन है। आनंद सिंह परिहार ने पुस्तक के बारे में जानकारी देते हुए गोराधाय के जीवन पर प्रकाश डाला।

एडवोकेट विजय शर्मा (सचिव, सोजती गेट व्यापारी संस्था) ने गोराधाय की वीरता का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने सफाई कर्मी का वेष धारण कर मुगल बादशाह औरंगजेब के महल में अपने पुत्र को छोड़कर महाराजा जसवंत सिंह के कुंवर पुत्र अजीत सिंह को सुरक्षित बाहर निकाला। उन्होंने उनके त्याग, बलिदान और अदम्य साहस की गाथा को याद किया।

ताराचंद गहलोत (सचिव) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत, मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से गोराधाय छतरी के जीर्णोद्धार, बेहतर प्रकाश व्यवस्था और झरने के निर्माण की मांग की। उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि जोधपुर में गोराधाय के नाम पर एक बड़ा स्मारक बनाया जाए और छतरी की क्षतिग्रस्त दीवारों और बाउंड्री की मरम्मत की जाए, ताकि सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
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64 लोगों की हुई स्वास्थ्य जांच, 41 यूनिट रक्त एकत्रित

जोधपुर में आयोजित शिविर में 80 लोगों ने कराई बीएमडी जांच

जोधपुरजालोरी गेट स्थित पुष्करणा गोविंदगढ़ में खांडा फलसा गणगौर मेला समिति द्वारा गुरुवार को एक विशाल निःशुल्क चिकित्सा एवं रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक चले इस शिविर का उदघाटन अतिथि सुदर्शन अरोड़ा, अध्यक्ष रामदास अरोड़ा, सचिव राजेश फोफलिया और शोभायात्रा संयोजक अभिषेक पुरोहित ने संयुक्त रूप से किया। शिविर के संयोजक अजय अरोड़ा और मनीष चांडक ने बताया कि चिकित्सा शिविर में डॉ. यश ठक्कर, डॉ. मुमताज अली और उनकी टीम ने 64 व्यक्तियों की स्वास्थ्य जांच की और उन्हें आवश्यक परामर्श दिया। इसके अलावा, 80 से अधिक लोगों ने शिविर में बीएमडी जांच का लाभ उठाया।

शिविर में रक्तदान का भी आयोजन किया गया, जिसमें पारस ब्लड बैंक की टीम ने 41 यूनिट रक्त एकत्रित किया। मीडिया प्रभारी मितेश जैन और महेश व्यास ने बताया कि राहुल कोठारी (91 बार), नरेश चौहान (64 बार), हरीश शर्मा, प्रियांशु अरोड़ा, दर्शन जाजड़ा और देवेन्द्र सोलंकी सहित कई लोगों ने उत्साहपूर्वक रक्तदान किया। शिविर में अतिथियों का राजेश जाजड़ा और नवरतन चौरड़िया का समिति द्वारा दुपट्टा और स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया। समिति ने इस सफल आयोजन के लिए सभी स्वयंसेवकों, डॉक्टरों और रक्तदाताओं का आभार व्यक्त किया।
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धींगा गवर: संस्कृति या अराजकता ? महिलाओं का मेला हुआ मनचलों का अड्डा

बरसों पुरानी परम्परा अब भ्रामक प्रचार और अराजकता का शिकार, प्रशासन की भूमिका पर सवाल

क्या बचा पाएगी "धींगा गवर" की गरिमा ? महिला शक्ति

जोधपुर/राजस्थान। धींगा गवर मेला, जोधपुर के भीतरी शहर की सांस्कृतिक विरासत है जो सदियों से महिलाओं का एक अनूठा त्योहार रहा है। बरसों से महिलाएँ समूहों में निकलकर विभिन्न मोहल्लों में गवर माता के दर्शन करती हैं, परन्तु पिछले कुछ दशकों में भ्रामक प्रचार ने इस मेले की छवि को विकृत कर दिया है। इसे कथित रूप से "बेंतमार गणगौर" नाम देकर इस मस्ती और उल्लास से भरे मेले को अराजकता में बदल दिया गया है।

अराजकता का यह आरोप इसलिए है क्योंकि तीजणियां (गवर पूजन करने वाली महिलाएं) रात दस बजे गवरों (गणगौर माता) के दर्शनार्थ निकलती हैं। वे अलसुबह 4:00 बजे गवर माता को धामकना करती हैं, इसलिए रात भर जागती रहती हैं। जिसे (राती जोगा) कहते है। यह यात्रा मनोरंजन और माता के दर्शन का माध्यम है। उनके हाथ में जो छड़ी (बेंत) होती है, जो कि आत्मरक्षा का सूचक है, न कि कथित कुंवारों को मारने या शादी का शुभ संकेत देने का माध्यम।

यह मिथ्या प्रचार इतना घातक हो गया है कि शहर (जोधपुर) और आसपास के गाँवों से लोग मेले में हुड़दंग मचाने आते हैं। इससे छोटे-मोटे झगड़े होते हैं, मेले की व्यवस्था बाधित होती हैं और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ भी सामने आती हैं। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से महिलाओं ने पुरुषों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और सोशल मीडिया पर स्टेटस न लगाने की अपील की थी किसका कुछ हद तक सकारात्मक प्रभाव पड़ा।

परन्तु प्रशासन और पुलिस केवल गश्त पर ही ध्यान केंद्रित करते रहे। वे इस मेले की वास्तविकता से अनभिज्ञ थे, इसलिए पुलिस ने अधिक हस्तक्षेप नहीं किया। शाम सात बजे से रात दस बजे तक ऐसी महिलाएँ, जिनका गणगौर पूजन से कोई लेना-देना नहीं है, हाथ में बेंत और डंडे लेकर पुरुषों पर हमला करती हैं, जिससे कई बार गंभीर चोटें भी लगती हैं। ये मनचले भी होते हैं जो केवल फब्तियां कसने आते हैं जबकि विस्ताविक गवर पूजन करने वाली महिलाएँ रात दस बजे से पहले बाहर नहीं निकलती हैं।

जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन से अपील:

जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन को इस मेले की मर्यादा बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए। पांच-छह दशक पहले पुरुष स्वेच्छा से अपने घरों में चले जाते थे। मोहल्लों की हथाइयों पर कुछ बुजुर्ग महिलाओं की सुरक्षा के लिए बैठते थे। परन्तु "बेंतमार गणगौर" नामकरण के बाद कई महिलाएँ डर से बाहर नहीं निकल पाती हैं।

प्रशासन को ये इंतज़ाम करने चाहिए:

*   ट्रैफिक व्यवस्था और भीड़ को नियंत्रित करना।
*  जालोरी गेट, हटडियों का चौक और आडा बाजार के मोड़        पर बेरिकेडिंग लगाकर पुरुषों का प्रवेश प्रतिबंधित करना।
*  महिला और पुरुष सिपाहियों की तैनाती।

जिला-पुलिस प्रशासन से स्टेज की परमिशन नहीं देने का आग्रह

"धींगा गवर माता" मेले में गवर माता विराजित होने के लिए केवल एक छोटा-सा स्टेज ही बनाया जाता हैं। जबकि पिछले कुछ दशकों से स्टेज व डीजे के रूप में चलाई गई परंपरा से ना केवल मेले की व्यवस्थाएं प्रभावित हो रही, बल्कि संकरी रोड़ व गलियों में स्टेज के आगे जाम लगने से भीड़ धक्का-मुक्की होने के कारण महिलाओं के साथ गलत हरकतें होने लगती हैं। ऐसे में जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन से भीतरी शहर के किसी भी क्षेत्र में स्टेज लगाने की परमिशन बिल्कुल नहीं देने का आग्रह हर शहरवासी कर रहा है क्योंकि ऐसी कोई पौराणिक परंपरा है ही नहीं। जहां नियम तोड़े जाते हो, वहां नियमनुसार उचित कार्रवाई की जाए।

धींगा गवर मेला हमारी संस्कृति का अंग है। इसकी रक्षा करना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।
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शोभायात्रा में उमड़ा जनसैलाब, शहर भर में रही भक्तिमय रौनक

दिन में लोटियों के मेले ने बढ़ाई रौनक

जोधपुर शहर में चैत्र शुक्ल तृतीया पर गवर माता की भव्य शोभायात्रा का साक्षी बना। सोमवार शाम को सिरे बाजार से निकली इस शोभायात्रा ने शहर में भक्तिमय रौनक भर दी।  शाम होते ही सड़कों के दोनों किनारे और छतों पर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई थी, गवर माता की झांकी देखने के लिए लोग उत्सुक नज़र आ रहे थे।

शोभायात्रा में ट्रैक्टरों और बग्गियों पर सजी विभिन्न झांकियाँ आकर्षण का केंद्र रहीं। खाटू श्याम, शिव बारात, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती और दुर्गा माता जैसी मनमोहक झांकियाँ गाजे-बाजे के साथ चल रही थीं। एक खास आकर्षण थी क्राउन से सजी सुंदर बग्गी जिसमें गवर माता के आगे सुहागिन महिला का स्वांग बनाये अमित बोहरा और यश भूतड़ा घुड़ला लेकर चल रहे थे।
शहर के भीतरी इलाके पैला मूंदड़ों की गली से गणगौर मेला कमेटी के तत्वावधान में यह धार्मिक शोभायात्रा शुरू हुई। गवर माता की झांकी स्वर्ण आभूषणों से सजी हुई थी। शोभायात्रा के दर्शन को लेकर शहरवासियों में जबरदस्त उत्साह दिखा।  संयोजक अशोक भैया और मदन मोहन भैया ने बताया कि शोभायात्रा पुंगलपाड़ा, हट्टड़ियों का चौक, कबूतरों का चौक, जालोरी गेट, बालवाड़ी स्कूल, खाण्डा फलसा, आडा बाजार, सर्राफा बाजार, कपड़ा बाजार, सिटी पुलिस, त्रिपोलिया बाजार होते हुए घण्टाघर पहुँची, जहाँ विश्राम के बाद माणक चौक, लखारा बाजार होते हुए राखी हाउस पहुँची। रास्ते में विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों और गवर समितियों ने शोभायात्रा का स्वागत किया। गवर माता को भोलावनी तक विराजमान किया जाएगा।

होली के दूसरे दिन से शुरू हुए गणगौर पूजन का समापन सोमवार को हुआ और सोमवार से ही अगले पखवाड़े तक धींगा गवर पूजन की शुरुआत हो गई है।

दिन में गणगौर तीज पर लोटियों के मेले का भी खास आकर्षण रहा। गवर पूजन करने वाली तीजणियाँ गाजे-बाजे के साथ पास के कुओं और तालाबों से पवित्र जल भरकर गवर माता को अर्पित करती नज़र आईं।
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शहर के कृष्ण मंदिरों में धार्मिक आयोजनों का हुआ आयोजन, पाण्ड्य नृत्य ने खींचा भक्तों का ध्यान

केसर होली और पाण्ड्योजी नृत्य ने रंगपंचमी को बनाया खास

जोधपुर शहर में चैत्र कृष्णा पंचमी के पावन अवसर पर बुधवार को रंगपंचमी का त्योहार धूमधाम से मनाया गया।  होली के पांच दिन बाद मनाए जाने वाले इस पर्व पर शहर के विभिन्न कृष्ण मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। भीतरी शहर के प्रसिद्ध गंगश्याम जी मंदिर में तो उत्साह का अद्भुत नजारा देखने को मिला। भक्तों ने एक दूसरे पर रंगों की बौछार कर होली खेली और पर्व का जश्न मनाया।

गंगश्यामजी मंदिर में सुबह से ही भक्तों का आना शुरू हो गया था। धार्मिक आयोजनों की एक श्रृंखला का आयोजन किया गया था। शाम को भगवान का विशेष श्रृंगार किया गया और  केसर होली का आयोजन हुआ। मंदिर के पुजारियों, मुरली मनोहर और पुरुषोत्तम शर्मा ने पिचकारी से भक्तों पर केसरिया रंग और गुलाल उड़ाया। इसके बाद मंदिर परिसर को साफ पानी से धोया गया।

रंगपंचमी का मुख्य आकर्षण रहा पांड्या नृत्य। पिछले कई सालों से चली आ रही इस परंपरा को इस बार भी जारी रखा गया। मंदिर परिसर में आयोजित इस नृत्य कार्यक्रम में बड़ी संख्या में भक्त उपस्थित हुए। मंदिर पुजारी पुरुषोत्तम शर्मा  पाण्ड्‌योजी और सौरभ शर्मा पाण्ड्वी की भूमिका में नजर आए। पाण्ड्योजी नृत्य के साथ ही मंदिर में 45 दिनों से चल रहे फागोत्सव, कुसुमोत्सव, रंगोत्सव और होरियों का समापन भी हो गया।
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80 साल पुरानी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए युवा पीढ़ी करेगी "श्लील गाली गायन" की प्रस्तुति

चंचल कुमार दवे और स्वर्गीय विश्वेश्वर दत्त व्यास को मिलेगा लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड

जोधपुरश्रीमाली ब्राह्मण समाज द्वारा एक अनोखे आयोजन की तैयारी की जा रही है। 15 मार्च 25 शनिवार को शिवबाड़ी स्थित समाज भवन (चांदपोल के बाहर) में "श्लील गाली गायन" कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। समाज अध्यक्ष महेन्द्र बोहरा और मंत्री नरेंद्र राज बोहरा ने बताया कि यह कार्यक्रम मारवाड़ की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि 80 से भी अधिक वर्षों से होली के त्यौहार पर श्रीमाली ब्राह्मण समाज में यह परंपरा चली आ रही है। इस वर्ष युवा पीढ़ी इस परंपरा को नया रूप देती हुई "श्लील गाली गायन" में नई गालियों का समावेश करेगी और उन्हें संगीतबद्ध करके प्रस्तुत करेगी। रमेश बोहरा, जितेन्द्र राज जोशी, गोपाल भट्ट, प्रेमदत्त ओझा, धर्मेंद्र बोहरा, विरेन्द्र राज जोशी, संजीव दवे, राजीव जोशी, हेमंत व्यास, सुरेंद्र कुमार त्रिवेदी, प्रेमप्रकाश दवे आदि इस कार्यक्रम के लिए रमन लाल त्रिवेदी और पंडित गोपाल ओझा के निर्देशन में पूरी तैयारी कर रहे हैं।

इस अवसर पर पिछले पचास वर्षों से "गाली गायन" कर रहे  चंचल कुमार दवे और स्वर्गीय विश्वेश्वर दत्त व्यास को उनके योगदान के लिए मरणोपरांत लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। यह आयोजन श्रीमाली ब्राह्मण समाज की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है और युवा पीढ़ी में इस परंपरा को जीवित रखने का एक प्रयास है।
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उत्साह और उल्लास से सराबोर रहा LIC आवासीय परिसर, भजनों और होली के रंगों ने बांधा समा

जोधपुर। भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) मंडल कार्यालय के आवासीय कॉलोनी परिसर में सोमवार शाम 6 से 9 बजे तक एक भव्य फागोत्सव का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में वरिष्ठ मंडल प्रबंधक राजीव गोसाई, विपणन प्रबंधक विजय सतपाल और तथागत तंवर, दावा प्रबंधक नौरतमल और नव व्यवसाय प्रबंधक सविता कौशिक बतौर अतिथि उपस्थित रहे। 

LIC मंडल कार्यालय की आवासीय कॉलोनी में आयोजित फागोत्सव में कॉलोनी वासियों ने जमकर होली खेली। वरिष्ठ अधिकारियों और कलाकारों की प्रस्तुति ने कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए।

कार्यक्रम की शुरुआत राधाकृष्ण की तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुई।  एक नन्हीं बालिका ने सभी आगंतुकों का अबीर-गुलाल से तिलक लगाकर और पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। इसके बाद प्रसिद्ध गायक पंकज बिंदास, गोविंद प्रसाद दाधीच, मदन गोपाल दाधीच, दिनेश दाधीच, मंजु डागा, मंजू प्रजापति, निर्मला दाधीच, स्नेहलता करल और अनिता करल ने श्याम भक्ति से ओतप्रोत भजनों, फाग गीतों और होरियों की मनमोहक प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम में मुख्य आकर्षण का केन्द्र हाथ में पिचकारी थामें, राधाकृष्ण की झांकी रही। साथ ही फाल्गुनिया परिधान में सजी-धजी महिलाओं और श्याम रसिकों ने पुष्प और अबीर-गुलाल से होली खेली। पूरे परिसर में फाल्गुन की मस्ती का माहौल छाया रहा और सभी उत्साह और उल्लास से सराबोर नजर आए।
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15 एकड़ में फैला भव्य मंदिर, 51 फीट ऊंची भगवान चित्रगुप्त की प्रतिमा आकर्षण का केंद्र

कायस्थ समाज के लिए आध्यात्मिक व सामाजिक विकास का केंद्र बनेगा शक्तिपीठ

जोधपुरवृन्दावन (उत्तर प्रदेश) ब्रजभूमि की यह पावन नगरी, अपनी प्राचीनता और 5000 से अधिक मंदिरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। बांके बिहारी, राधारमण, रंगनाथ जैसे मंदिरों के अलावा, अब एक और आध्यात्मिक स्थल ने इस शहर की धार्मिक धरोहर में नया अध्याय जोड़ा है–श्री चित्रगुप्त शक्तिपीठ लगभग 15 एकड़ में फैले इस भव्य परिसर का निर्माण श्री श्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी सच्चिदानंद, पशुपतिनाथ महाराज के सान्निध्य में किया जा रहा है।

यह शक्तिपीठ केवल एक मंदिर से कहीं अधिक है। यह अध्यात्म, योग साधना, और समाज सेवा का एक केंद्र होगा। यहाँ उपलब्ध सुविधाओं में नक्षत्र वाटिका, आयुर्वेदिक औषधालय, विद्यापीठ और आवास की व्यवस्था शामिल है।  परिसर में  51 फीट ऊँची भगवान श्री चित्रगुप्त की प्रतिमा स्थापित की गई है, जो दुनिया की सबसे ऊँची चित्रगुप्त प्रतिमा होने का दावा करती है। यह प्रतिमा न केवल विशाल और मनमोहक है, बल्कि शिल्प कला का अद्भुत नमूना भी है।

तीन मंजिला भव्य मंदिर का निर्माण पत्थरों से किया जा रहा है, जिसमें स्टील का प्रयोग नहीं किया गया है, ताकि यह आने वाली सदियों तक अक्षुण्ण रहे। मंदिर के चारों ओर परिक्रमा मार्ग बनाया जा रहा है जो भक्तों को शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करेगा।
श्री चित्रगुप्त शक्तिपीठ, वृन्दावन के मीडिया प्रभारी अरूण माथुर ने बताया कि श्री चित्रगुप्त शक्तिपीठ का निर्माण कायस्थ समाज के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह समाज के आध्यात्मिक विकास और समृद्धि में योगदान देगा। इस पीठ के माध्यम से समाज को समानता और विकास के नए आयाम प्राप्त होंगे।

वृन्दावन आने वाले पर्यटक और भक्त अब राधा-कृष्ण की लीलाओं के साथ-साथ भगवान चित्रगुप्त के दर्शन का भी लाभ उठा सकेंगे। यह शक्तिपीठ न केवल धार्मिक स्थल बल्कि एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में भी उभरकर सामने आएगा।